नंगी प्रजातियों की नंगी जबान
थूककर गुटक रहें अपने बयान-
फेंक रहे लपेटकर मुफ्त आश्वासन
मनभावन मुद्दों की खुली है दुकान----
देश को लूटने की हो रही साजिश
बैठे गये हैं बंदर बनाकर मचान--
उधेड़ दो चेहरों से मखमली खाल
चितकबरे चेहरे बने न महान--
पी गये चचोरकर सारी व्यवस्थायें
सूख गए खेत खलियान और बगान--
"ज्योति खरे"
8 टिप्पणियां:
देशभगत नाराज हो रहे हैं बहुत। लिखने वालों पर।
फिर भी :) सुन्दर तो सुन्दर होता है।
मदारी का बंदर अगर बंदर घुड़की दे तो दे ।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सटीक, कटाक्ष भी र मन का तंज भी बिगड़ती व्यवस्था पर।
अप्रतिम।
नंगी प्रजातियों की नंगी जबान
थूककर गुटक रहें अपने बयान-
फेंक रहे लपेटकर मुफ्त आश्वासन
मनभावन मुद्दों की खुली है दुकान---
बहुत ही सही लिखा है आपने। संस्कारों से परे बातों वाले ये जीव, वस्तुतः परजीवी हैं, शोषण ही करेंगे, इनसे कल्याण की अपेक्षा करना भी बेमानी है।
साधुवाद आदरणीय खरे जी।
समसामयिक सटीक रचना
बहुत सुन्दर सटीक समसामयिक रचना...
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