शुक्रवार, अगस्त 23, 2019

कृष्ण का प्रेम


आधुनिक काल की
कंदराओं से निकलकर
कृष्ण का
सार्वजानिक जीवन में
कब प्रवेश हुआ
इतिहास में इसकी तिथि दर्ज नहीं है
दर्ज है केवल कृष्ण का प्रेम

इतिहासकार बताते हैं
भक्ति की सारी मान्यतायें
भक्ति काल में ही
सिकुड़ कर रह गयी थी
जैसे सूती कपड़े को पहली बार
धोने के बाद होता है

सूती साड़ियों से
द्रोपती का तन ढांकने वाला कृष्ण
आधुनिक काल में
नारियों को देखते ही
मंत्र मुग्ध हो जाता है
चीरहरण के समय की
अपनी उपस्थिति को भूल जाता है

सार्वजनिक जीवन में
नाबालिगों से लेकर बूढ़ों तक का
नायक है कृष्ण
राजनितिक दलों का महासचिव
बॉलीवुड का सिंघम

स्वीकार भी करता है कृष्ण
कि, राजनीतिक दखलअंदाजी 
और सूचनाओं के अभाव में
मुझे कई कांडों का पता ही नहीं चलता
कि, इस देश में
शाश्वत प्रेम
अब बलात्कारियों के घरों में रहने लगा है

घनौनी साजिश से लिपटी हवाओं ने
मेरे भीतर के कृष्ण को
बहुत पहले मार दिया था
और मैं अनुशासनहीनता की
छाती से चलकर
बियर बार में बैठने लगा
युवा मित्रों को प्रेम के गुर सिखाने

आत्मग्लानि से भरा मैं
अपने आपको भाग्यशाली मानता हूँ
कि, आज भी मेरे जन्मदिन पर
शुद्ध घी के असंख्य दीपक जलाकर 
प्रार्थना करते हैं लोग
हे कृष्ण
घर परिवार,नाते-रिश्तेदारों
अड़ोसी- पड़ोसी
और देश को
वास्तविक प्रेम का पाठ पढ़ाओ
ताकि इस देश के लोग
जीवन में
वास्तविक प्रेम का अर्थ समझ सकें---

"ज्योति खरे"

शुक्रवार, अगस्त 16, 2019

बच्चे सहेजना चाहते हैं

स्वतंत्रता दिवस की परेड में खड़े
इस महादेश के बच्चे
आपस में बातें कर रहें हैं
कि जहां
मजदूर,किसान,खेत और रोटी की बात होना चाहिए
वहां हथियारों की बात हो रही है

सन्नाटे में खदबदाते तनाव को
सिरे से खारिज कर
मनुष्य के बेहतर जीवन की घोषणाऐं
हो रही हैं

लेकिन इस देश के बच्चे
आज भी सरकारी स्कूल की
चूती छतों के नीचे बैठकर
अच्छा नागरिक बनने
भूखे पेट स्कूल जा रहैं हैं

ऐसे भयानक खतरनाक समय में
राष्ट्रगीत भी गाना जरुरी है

बच्चे खड़े खड़े
नई सुबह के उजाले को पकड़कर
भविष्य का तार तार बुनने का
प्रयास कर रहें हैं

युद्ध मेँ भाग रहे सैनिकों को
एक चुम्बन के बहाने
अपने पास बुला रहें हैं

बच्चे पकड़ना चाहते हैं
माँ का आंचल
दीदी की तार तार हो रही चुन्नी
थामना चाहते हैं पापा की उंगली
पहचानना चाहते हैं
अपनी सभ्यता और संस्कृति

बच्चे सहेजना चाहते हैं
दरक चुकी भारत माता की तस्वीर
आसमान को अपना समझकर
करना चाहते हैँ
ध्रुव तारे से दोस्ती.......

"ज्योति खरे"

रविवार, अगस्त 04, 2019

दोस्तो मेरे पास आओ

तूफानो को
पतवार से बांध दिया है
बहसों, बेतुके सवालों
कपटपन और गुटबाजी की
राई, नून, लाल मिर्च से
नजर उतारकर
शाम के धुंधलके में
जला दिया है

कलह, किलकिल और
संघर्षो को
पुटरिया में लपेटकर
बूढ़े नीम पर
टांग दिया है

बांध लिया है
बरगद की छांव में
बटोर कर रखे
तिनका तिनका
सुखों का झूला

दोस्तो मेरे पास आओ
खट्टी- मीठी
तीखी- चिरपरी
स्मृतियों को झुलायेंगे
थोड़ा सा रो लेंगे
थोड़ा सा हंस लेँगे---

"ज्योति खरे"

शुक्रवार, अगस्त 02, 2019

अस्पताल से

तड़फते,कराहते
वातावरण में
धड़कनों की
महीन आवाजें
पढ़ती हैं
उदास संवेदनाओं
के चेहरों पर
अनगिनत संभावनाऐं

घबड़ाहटें
चुपचाप
देखती हैं
प्लास्टिक की बोंतलों से
टपककती ग्लूकोज की बूंदें
इंजेक्शनों की चुभती सुई के साथ
सिकुड़ते चेहरे

सफेद बिस्तर पर लेटी देह
देखती है
मिलने जुलने वालों के चेहरों को
अपनी पनीली आंखों से
कि,कौन कितना अपना है

अपनों में
अपनों का अहसास
अस्पताल में ही होता है -------

"ज्योति खरे"