यार फागुन
सालभर में एक बार
चले आते हो दबे पांव
खोलकर प्रेम के रहस्यों को
फिर चले जाते हो
तुम केवल
बात करते हो
रंगदारी से रंगों की
प्रेम के मनुहार की
यार फागुन
शहर की
संकरी गलियों में भी
झांक लिया करो
मासूम गरीबों के सपने
रंगहीन पानी की तरह
बहता मिलेंगे
झोपड़ पट्टी में
कुछ दिन गुजारो
भूखे बच्चों के शरीर में
कपड़ों के नाम पर
चिथड़ा ही मिलेंगे
यार फागुन
उजड़ते गांव में भी
एकाध बार आओ
जहां पैदा तो होता है अनाज
पर रोटियां की कमी है
सर्वहारा वर्ग को
गुझिया के चक्कर में
कर्ज में ना लादो
यार फागुन
एक चुटकी गुलाल
मजदूरों के गाल पर भी मल देना
गुस्सा मत होना
दोस्त हो
बिना गुलाल के भी
गले लगा लेना
यार फागुन
आते रहना इसी तरह
हर साल
तुम्हारे बहाने
रुठों को गले लगा लेते हैं
दुश्मनों के माथे पर
टीका लगाकर
अपना बना लेते हैं------
11 टिप्पणियां:
रंगों के मौसम की मंगलकामनाएं। लाजवाब।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 05 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उत्तम कृति...
बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
सादर
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
उत्तम
वाह!बहुत उम्दा सृजन 👌फागुन के बहाने रूठे को मना लेगें ..वाह!
यार फागुन
आते रहना इसी तरह
हर साल
तुम्हारे बहाने
रुठों को गले लगा लेते हैं
दुश्मनों के माथे पर
टीका लगाकर
अपना बना लेते हैं----
बहुत ही सुंदर संदेश दिया आपने ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन सर
झोपड़ पट्टी में
कुछ दिन गुजारो
भूखे बच्चों के शरीर में
कपड़ों के नाम पर
चिथड़ा ही मिलेंगे
बहुत सुन्दर ...लाजवाब सृजन।
बहुत खूब ब आदरणीय सर ! फागुन को भी ये अनौपचारिक उद्बोधन खूब भायेगा | रंगोत्सव की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं|
यार फागुन
आते रहना इसी तरह
हर साल
तुम्हारे बहाने
रुठों को गले लगा लेते हैं
दुश्मनों के माथे पर
टीका लगाकर
अपना बना लेते हैं------
बहुत सुन्दर... रंगोत्सव की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं सर!
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