शनिवार, मार्च 08, 2025

स्त्री पिस जाती है

स्त्री पिस जाती है 
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स्त्री पीसती है
सिल-बट्टे में
ससुर की
देशी जड़ी बूटियां
सास के लिए
सौंठ,कालीमिर्च,अजवाइन
पति के तीखे स्वाद के लिए
लहसुन,मिर्चा,अदरक

पीस लेती है
कभी-कभार
अपने लिए भी
टमाटर हरी-धनिया 

स्त्री नहीं समझ पाती कि,
वह खुद 
पिसी जा रही है
चटनी की तरह---

◆ज्योति खरे

4 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

पुरष कवि हो लेता है :)

Bharti Das ने कहा…

बेहद खूबसूरत रचना

Anita ने कहा…

स्त्री की पीड़ा को शब्द देती प्रभावशाली रचना

Meena sharma ने कहा…

लेकिन अब नई पीढ़ी की स्त्रियाँ नहीं पिसती आदरणीय खरे जी, हाँ गाँव देहात में अधिकांश का अब भी यही हाल है.