बुधवार, सितंबर 16, 2020

कैसी हो मेरी "अपना"

कैसी हो मेरी "अपना"
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बहुत बरस तक
अक्सर मिलते थे
बगीचे में
बैठकर छूते थे 
एक दूसरे की कल्पनाएं
टटोलते थे एक दूसरे के दिलों में बसा प्रेम

आज भी उस बगीचे में जाकर बैठता हूं
मुठ्ठियों में भरकर
चूमता हूं यादों को
सोचता हूँ
जब तुम
हरसिंगार के पेड़ के नीचे से 
गुजकर आती थीं
औऱ बैठ जाती थी 
चीप के टुकड़े पर
मैँ भी बैठ जाता था तुम्हारे करीब
निकालता था फंसे हुए हरसिंगार के फूल
तुम्हारे बालों से
इस बहाने
छू लेता था तुम्हें
डूब जाता था
तुम्हारी आंखों के
मीठे पानी में

अब तुम दूर हो
बदल गयी हैं
भीतर की बेचैनियां
पहले मिलने की होती थी
अब यादों में होती हैं

भागती हुई यादों से 
कहता हूं रुको
मेरी "अपना"
आती होगी
उसके बालों में फंसे
हरसिंगार के फूल निकालना हैं
जिन्हें मैँ जतन से
सहेजकर रखता हूँ

तुम अब नहीं ही मेरे पास
फिर भी 
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है
 
कैसी हो मेरी "अपना"

"ज्योति खरे"

22 टिप्‍पणियां:

Madhulika Patel ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 17 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब सृजन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अद्भुत !

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को   "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी"  (चर्चा अंक-3828)   पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
सादर...!--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Rakesh ने कहा…

सुन्दर सृजन

Kamini Sinha ने कहा…


तुम अब नहीं ही मेरे पास
फिर भी
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है
लाज़बाब,बहुत सुंदर सृजन,सादर नमन सर

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Alaknanda Singh ने कहा…

जब तुम
हरसिंगार के पेड़ के नीचे से
गुजकर आती थीं
औऱ बैठ जाती थी .... क्या खूब ल‍िखा है ज्योत‍ि जी , मन को छूने वाली हैं सभी पंक्त‍ियां

Sudha Devrani ने कहा…

तुम अब नहीं ही मेरे पास
फिर भी
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है

कैसी हो मेरी "अपना"
बहुत ही हृदयस्पर्शी ...
लाजवाब सृजन।

Onkar ने कहा…

बहुत ही सुंदर

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

Acchisiksha ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लेख |


Hindi Vyakran Samas

आभा खरे ने कहा…

वाह.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति