रविवार, दिसंबर 13, 2020

तम शीत ऋतु की तरह आती हो

तुम शीत ऋतु की तरह आती हो
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तुम्हारे आने की सुगबुगाहट से
खड़कियों में 
टांग दिए हैं
गुलाबी रंग के नये पर्दे 
क्योंकि
तुम्हें धूप का छन कर
कमरे में आना बहुत पसंद है

मैरून रंग की 
लैक्मे की लिपिस्टिक
एचन्ट्यूर का रोज़ पावडर
कैल्विन क्लिन का परफ्यूम 
वेसिलीन
औऱ निविया की कोल्ड क्रीम
ड्रेसिंग टेबल पर सजा दी है
आइने को चकमा दिया है
ताकि, तुम्हें 
अपने चेहरे की झूर्रियों को
देखते समय
आंखों में जोर न लगाना पड़े
 
मसूर की दाल में
बेसन,गुलाब जल मिलाकर
उबटन बना दिया है
औऱ पियर्स की सुगंध से
महका दिया है 
स्नानघर 

रजाई में नयी रुई भरवा दी है
कत्थई रंग का ऊनी कार्डिगन 
काला शाल
औऱ कुछ पुरानी स्वेटर
रख दी है सहेजकर

खाने की मेज पर
गजक, गुड़ की पट्टी
सजा दी है

तुम्हारे आने की सुगबुगाहट से
बहुत कुछ बदल जाता है
पर सबसे ज्यादा 
बदल जाता हूँ मैं
जानता हूँ 
घर के अंदर आने से पहले
मेरे कांधे पर सर रखकर
वही पुराना सवाल करोगी
मुझे कितना चाहते हो ?

मैं भी वही पुराना जवाब दूंगा
घर में रखी 
तुम अपनी पसंद की
चीजों को देखो
औऱ महसूस करो

तुम देहरी पर रुककर
फिर कहोगी
मुझसे प्यार करते हो ?
मैँ तुम्हें फिर समझाऊँगा

मैँ प्यार नहीं
समर्पण का पक्षधर हूं--- 

"ज्योति खरे"

10 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

कहां थे हजूर? लाजवाब । लगातार आया कीजिये ना।

Jyoti khare ने कहा…

अब आया करूँगा,आभार आपका

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

नजर ना लगे भाभी सा

Rohitas Ghorela ने कहा…

सवाल कितना भोला है
उत्तर कितना कड़क
लाजवाब रचना।

नई रचना- समानता

Rakesh ने कहा…

लाजवाब शब्द और उपमा कमाल के है

Alaknanda Singh ने कहा…

राम राम ज्योत‍ि जी, बहुत द‍िनों बाद म‍िली आपकी रचना ...सारे ब्रांड से सजा घर, उसके आगमन की प्रतीक्षा... और फ‍िर ये कहना क‍ि मैं प्यार नहीं समर्पण का पक्षधर हूं...वाह। लाजवाब कर गया

Amrita Tanmay ने कहा…

अति सुन्दर समर्पण ।

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर सृजन।

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

सुन्दर सृजन,

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत प्यारी व मनमोहक रचना. बहुत बधाई.