वृद्धाश्रम में होली
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बूढ़े दरख्तों में
अपने पांव में खड़े रहने की
जब तक ताकत थी
टहनियों में भरकर रंग
चमकाते रहे पत्तियां और फूल
मौसम के मक्कार रवैयों ने
जब से टहनियों को
तोड़ना शुरू किया है
समय रंगहीन हो गया
रंगहीन होते इस समय में
सुख के चमकीले रंगों से
डरे बूढ़े दरख़्त
कटने की पीड़ा को
मुठ्ठी में बांधें
टहलते रहते हैं
वृद्धाश्रम की
सुखी घास पर
इसबार
बूढ़े दरख्तों के चिपके गालों पर
चिंतित माथों पर
लगाना है गुलाल
खिलाना है स्नेह से पगी खुरमी
मुस्कान से भरी गुझिया
एक दिन
हमें भी बूढ़े होना है---
"ज्योति खरे"
39 टिप्पणियां:
वाह।
ठीक कहा आपने आदरणीय ज्योति जी ।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना आज शनिवार २७ मार्च २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सही..
सटीक..
आभार..
सादर...
वाह! अद्भुत ।
होना तो चाहिए ऐसा ही लेकिंकैसे पैदा हो इतनी संवेदना । जब खुद के बच्चे भुला देते अपने ही मां बाप को ।
सुंदर भाव
इस बार बुढ़े दरखतो के गालों पर, चिंतीत माथों लगाना है गुलाल... बहुत खूब, ये नेक काम करके हम उन्हें तो सुख देगे ही, हमें भी शुकून मिलेगा, बेहद प्यारी रचना आदरणीय सर, आप को भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं
निर्वाक !!! हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आ0 सत्य को दिखाता सटीक सृजन
प्रभावशाली लेखन - - होली की शुभकामनाएं।
सटीक सृजन
वृद्धावस्था की व्यथा को इस अभिव्यक्ति ने जुबां दी है। होली हो या दीवाली, बूढ़े दरख्त अपनी बहारों के मौसम को याद तो करते ही होंगे। कोरोना ने वृद्धों का जीवन और भी दूभर कर दिया है। वे कहीं जा नहीं सकते, कोई उनके पास आ नहीं सकता।
बहुत खूब प्रस्तुति, होली की हार्दिक शुभकामनाएं
सही है
बहुत सुन्दर संवेदनशील रचना...होली की शुभकामनाएँ
संवेदनशील रचना...
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आज के वर्तमान परिस्थितियों पर बिल्कुल सटीक रचना
बहुत बहुत प्रशंसनीय सुन्दर रचना |
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
सच कहा है बूढ़ा तो हमें भी होना है ... चिंता आज करने की ज़रूरत है ... लाजवाब रचना है ...
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आदरणीय सर , अनायास आँखें नम कर जाती ये रचना | यकायक जीवन में अप्रासंगिक हो जाना और जीवन का सफर वृद्धाश्रम में जाकर रुकना ! हम भूल जाते हैं हम भी एक -एक पग धरकर इसी व्यवस्था की ओर अग्रसर हैं | मार्मिक रचना जो जीवन की दारुणता का दहला देने वाला जीवंत चित्र उपस्थित करती है | सादर
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