सीढ़ी पर बैठे बच्चे
सीढ़ी पर बैठकर बच्चे
घुप्प अंधेरे और
सीढ़ी पर बैठकर बच्चे
पकड़े थे माँ का आँचल
दुनियां के ये बच्चे
अपनी अपनी माँ से कह रहे थे कह रहे थे पापा से
सीढ़ी पर बैठे बच्चे
सभ्यता और संस्कृति की
क्या अब
उसी सीढ़ी पर बैठकर बुद्धिजीवी
तलाशकर लौटा पायेंगे उसी सीढ़ी पर बैठकर बुद्धिजीवी
दुनियां के बचे हुए लोगो
सभ्यता और संस्कृति की "ज्योति खरे"
7 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
क्या अब
उसी सीढ़ी पर बैठकर बुद्धिजीवी
तलाशकर लौटा पायेंगे
मां की गोद के
लापता खून से लथपथ बच्चे---निःशब्द...।
दुनियां के बचे हुए लोगो
सभ्यता और संस्कृति की
ओढ़कर तार-तार चादर
आसमान में देखो
ध्रुव तारे के पास से
बह रहे हैं
दुनियां की सभी माओं के आंसू ------
निशब्द करता मार्मिक काव्य चित्र जो मिटती मानवता का विद्रूप पक्ष दिखाता है। आंतकवाद में मानवता का सबसे ज्यादा क्षय हुआ है। सादर
ओह!!!
बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सृजन
दुनियां के बचे हुए लोगो
सभ्यता और संस्कृति की
ओढ़कर तार-तार चादर
आसमान में देखो
ध्रुव तारे के पास से
बह रहे हैं
दुनियां की सभी माओं के आंसू ------
मार्मिक अभिव्यक्ति ।
बहुत मार्मिक । अंतर्मन को छू गई आपको रचना ।
बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति सर,सादर नमन
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