बुधवार, दिसंबर 17, 2014

दुनियां की सभी माओं के आंसू ----


सीढ़ी पर बैठे बच्चे
बच्चे नहीं
समूची दुनियां के
नयी सदी के मनुष्य थे
 
सीढ़ी पर बैठकर बच्चे
घुप्प अंधेरे और
आतंक के साये में
जीवन की नयी संभावनाओं का
तार-तार बुन रहे थे
पढ़ रहे थे
मनुष्यता का पाठ
चाहते थे
दुनियां के हर बच्चेां से
दोस्ती करना
 
सीढ़ी पर बैठकर बच्चे
पकड़े थे माँ का आँचल
पापा की उंगली
दादा की लाठी
दादी का चश्मा
 
दुनियां के ये बच्चे
अपनी अपनी माँ से कह रहे थे
पोंछती रहें हर बच्चे के आंसू 
कह रहे थे पापा से
आतंक के अंधेरे को करते रहें नष्ट
तय करें उजाले का सफर
कह रहे थे दादी से
चश्मे के बिना तारे गिनों
दादा की लाठी से
बदलना चाहते थे
संस्कृति
 
सीढ़ी पर बैठे बच्चे
सभ्यता और संस्कृति की
भरी बंदूक से
मार दिये गए
पाठशाला में ही रंग गयी
मनुष्यता का पाठ पढ़ाने वाली किताबें
 
क्या अब
उसी सीढ़ी पर बैठकर बुद्धिजीवी
तलाशकर लौटा पायेंगे
मां की गोद के
लापता खून से लथपथ बच्चे
 
दुनियां के बचे हुए लोगो
सभ्यता और संस्कृति की
ओढ़कर तार-तार चादर
आसमान में देखो
ध्रुव तारे के पास से
बह रहे हैं
दुनियां की सभी माओं के आंसू ------

"ज्योति खरे"



7 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

SANDEEP KUMAR SHARMA ने कहा…

क्या अब
उसी सीढ़ी पर बैठकर बुद्धिजीवी
तलाशकर लौटा पायेंगे
मां की गोद के
लापता खून से लथपथ बच्चे---निःशब्द...।

रेणु ने कहा…

दुनियां के बचे हुए लोगो
सभ्यता और संस्कृति की
ओढ़कर तार-तार चादर
आसमान में देखो
ध्रुव तारे के पास से
बह रहे हैं
दुनियां की सभी माओं के आंसू ------
निशब्द करता मार्मिक काव्य चित्र जो मिटती मानवता का विद्रूप पक्ष दिखाता है। आंतकवाद में मानवता का सबसे ज्यादा क्षय हुआ है। सादर

Sudha Devrani ने कहा…

ओह!!!
बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सृजन

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दुनियां के बचे हुए लोगो
सभ्यता और संस्कृति की
ओढ़कर तार-तार चादर
आसमान में देखो
ध्रुव तारे के पास से
बह रहे हैं
दुनियां की सभी माओं के आंसू ------

मार्मिक अभिव्यक्ति ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बहुत मार्मिक । अंतर्मन को छू गई आपको रचना ।

Kamini Sinha ने कहा…

बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति सर,सादर नमन