गुरुवार, सितंबर 28, 2023

गूंजती है ब्रह्मांड में

गूंजती है ब्रह्मांड में
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गौधूलि सांझ में
बादलों के झुंड
डूबते सूरज की पीठ पर बैठकर
खुसुरपुसुर बतियाते हैं

समुद्र की मचलती लहरें
किनारों से मिलने
बेसुध होकर भागती हैं 
और जलतरंग की धुन
सजने संवरने लगती है

इस संधि काल में
सूरज को धकियाते
ऊगने लगता है चांद

लहरें 
किनारों पर आकर 
पूछती हैं हालचाल 
जैसे हादसों के इस दौर में
मुद्दतों के बाद
मिलते हैं प्रेमी
करते दिल की बातें
जो गूंजती हैं ब्रह्मांड में---

◆ज्योति खरे

7 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर,भावपूर्ण रचना सर।
प्रणाम
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

रेणु ने कहा…

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना आदरणीय सर! मानकीकरण को आपसे बेहतर कौन लिख सकता है? हार्दिक शुभकामनाएँ और प्रणाम 🙏

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका