💧बूंद 💦
********
उबलता हुआ जीवन
आसमान की छत पर
भाप बनकर चिपक जाता है जब
तब काला सफ़ेद बादल
घसीट कर भर लेता है
अपने आगोश में
फिर भटक भटक कर
टपकाने लगता है
पानीदार बूंदें
बादल देखता है
धरती की सतह पर
भूख से किलबिलाते बच्चों के
चेहरों पर बनी
आशाओं की लकीरें
पढ़ता है प्रेम की छाती पर लिखे
विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे
अनगिनत पत्र
दरकते संबंधों में बन रही
लोक कलाकारी
और दहशत में पनप रहे संस्कार
इस भारी दबाब में
टपकती हैं
जीवनदार बूंदे
क्यों कि, बूंद
सहनशील होती है
खामोश रहकर
कर देती है
धूल से भरी
अहसास की जमीन को साफ
बूंद तनाव से मुक्त होती है
बूंद
तृप्त कर देती है अतृप्त मन को
सींच देती है
अपनत्व का बगीचा
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती पर जिंदा है हरियाली
जिंदा है जीवन-----
◆ज्योति खरे
25 टिप्पणियां:
कितना गहन चिंतन । बूँद को विहंगम दृष्टि से देखा है ।
वाह
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती पर जिंदा है हरियाली
जिंदा है जीवन-----
लाजवाब ! चिन्तन परक सृजन ।
आहा हर,मन को तृप्त करती रचनात्मक बूँद।
अति सुंदर, शब्द शिल्प भी बेहद शानदार है।
-----
छटपटाते,सूखे जीवन के कंठ की तृप्ति,
सुनो ओ बूँद तुमसे ही जीवंत सारी सृष्टि।
----
अद्भुत अभिव्यक्ति।
प्रणाम सर।
सादर।
बेहतरीन सृजन
आभार..
सादर..
आभार आपका
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२७-०५-२०२२ ) को
'विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे अनगिनत पत्र'(चर्चा अंक-४४४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
इस भारी दबाब में
टपकती हैं
जीवनदार बूंदे
क्यों कि, बूंद
सहनशील होती है
खामोश रहकर
कर देती है
धूल से भरी
अहसास की जमीन को साफ
बूंद तनाव से मुक्त होती है बहुत सुंदर रचना,सच कहा आपने एक बूंद बहुत कुछ कहती हैं ।
आभार आपका
आभार आपका
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आभार आपका
बादल देखता है
धरती की सतह पर
भूख से किलबिलाते बच्चों के
चेहरों पर बनी
आशाओं की लकीरें
पढ़ता है प्रेम की छाती पर लिखे
विश्वास,अविश्वास के रंगों से गुदे
अनगिनत पत्र
दरकते संबंधों में बन रही
लोक कलाकारी
और दहशत में पनप रहे संस्कार
चलो बादल तो देखता है उन्हें जिन्हें शायद भगवान ने भी देखना बंद कर दिया ।
बहुत ही सुंदर गहन चिंतनपरक एवं लाजवाब सृजन ।
गूढ़ भावों को व्यक्त करती अप्रतिम रचना।
सार्थक दर्शन।
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
उबलता हुआ जीवन
आसमान की छत पर
भाप बनकर चिपक जाता है जब
तब काला सफ़ेद बादल
घसीट कर भर लेता है
अपने आगोश में
फिर भटक भटक कर
टपकाने लगता है
पानीदार बूंदें
...बहुत सुंदर बिम्ब और सुंदरतम भावों से युक्त सराहनीय रचना।
इस भारी दबाब में
टपकती हैं
जीवनदार बूंदे
क्यों कि, बूंद
सहनशील होती है
खामोश रहकर
कर देती है
धूल से भरी
अहसास की जमीन को साफ
बूंद तनाव से मुक्त होती है
अदभुत सृजन आदरणीय सर, "बूंद" जिसे देखना का एक अलग ही नजरिया आपका,सादर नमस्कार आपको 🙏
क्यों कि, बूंद
सहनशील होती है
खामोश रहकर
कर देती है
धूल से भरी
अहसास की जमीन को साफ...वाह क्या खूब समझा है और समझाया भी है...नन्हीं बूंद के अस्तित्व को आपने
सुंदर सृजन
सच कहा , बेहतरीन अभिव्यक्ति
आभार आपका
आभार आपका
एक टिप्पणी भेजें