तुम्हारी चीख में शामिल होगा
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अखबार के मुखपृष्ठ में
लपेटकर रख लिए हैं
तुम्हारे लिखे प्रेम पत्र
और गुजरा हुआ साल
जब
बर्फ़ीली हवाओं में
ओढ़ कर बैठूंगा रजाई
तो पढूंगा प्रेम पत्र और
बीते हुए साल का लेखा-जोखा
उम्मीदें खुरदुरी जमीन पर
कहाँ दौड़ पाती हैं
तुम जब लिख रही थी
प्रेम पत्र और उनमें
बैंडेज की पट्टी के साथ
चिपका रही थी गुलाब
डाल रहीं थी सपनों की स्वेटर में फंदा
उसी समय
राजधानी में रची जा रही थी
धर्म को, ईमान को
और
मनुष्य की मनुष्यता की पहचान को
मार डालने की साजिशें
ऐसे खतरनाक समय में
प्रेम कहाँ जीवित रह पाता है
मैं अपने ही घर से बेदखल
होने की बैचेनियों से गुजर रहां हूं
लड़ रहा हूं
साज़िशों के खिलाफ़
तुम भी तो
गुजर रही हो इसी दौर से
जब कभी घबड़ाओ
तो बहुत जोर से चीखना
तुम्हारी चीख में शामिल होगा
एक सवाल
आसमान तुम चुप क्यों हो----
◆ज्योति खरे