तुम्हारी चीख में शामिल होगा
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अखबार के मुखपृष्ठ में
लपेटकर रख लिए हैं
तुम्हारे लिखे प्रेम पत्र
और गुजरा हुआ साल
जब
बर्फ़ीली हवाओं में
ओढ़ कर बैठूंगा रजाई
तो पढूंगा प्रेम पत्र और
बीते हुए साल का लेखा-जोखा
उम्मीदें खुरदुरी जमीन पर
कहाँ दौड़ पाती हैं
तुम जब लिख रही थी
प्रेम पत्र और उनमें
बैंडेज की पट्टी के साथ
चिपका रही थी गुलाब
डाल रहीं थी सपनों की स्वेटर में फंदा
उसी समय
राजधानी में रची जा रही थी
धर्म को, ईमान को
और
मनुष्य की मनुष्यता की पहचान को
मार डालने की साजिशें
ऐसे खतरनाक समय में
प्रेम कहाँ जीवित रह पाता है
मैं अपने ही घर से बेदखल
होने की बैचेनियों से गुजर रहां हूं
लड़ रहा हूं
साज़िशों के खिलाफ़
तुम भी तो
गुजर रही हो इसी दौर से
जब कभी घबड़ाओ
तो बहुत जोर से चीखना
तुम्हारी चीख में शामिल होगा
एक सवाल
आसमान तुम चुप क्यों हो----
◆ज्योति खरे
4 टिप्पणियां:
वाह | शुभकामनाएं नववर्ष की |
ओह्ह... बेहद मर्मस्पर्शी...
चुभते प्रश्न छोड़ती सराहनीय कविता।
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कुछ प्रश्नों के उत्तर
लौट के नहीं आते हैं
हाँ ,आसमां चुप है?
बहुत उदास भी शायद
चीखों के शोर से
अनमयस्क...
हर दिन
ताकता रहता है
धरा को,
किसी चीख विहीन
भोर की
उम्मीद लिए.. ।
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प्रणाम सर।
प्रेम हर हालत में जिंदा रह लेता है। हाँ, उम्मीदों को सँभालना कुछ कठिन हो जाता है। साजिशों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का संदेश देती गहरी रचना। शुभकामनाएँ और सादर प्रणाम।
तुम जब लिख रही थी
प्रेम पत्र और उनमें
बैंडेज की पट्टी के साथ
चिपका रही थी गुलाब
डाल रहीं थी सपनों की स्वेटर में फंदा
उसी समय
राजधानी में रची जा रही थी
धर्म को, ईमान को
प्रेम और धर्म को मरना आसान नहीं चाहे कितनी ही साजिशे रची जाये परिस्थिति बस वो खुद को ही दबा लेता है
मगर ,उम्मींद तो हमेशा हरी ही रहती है ,सादर नमन सर नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
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