कांटों के बीच
खिलने के बावजूद
सम्मोहित कर देने वाले
इनके रंग
और देह से उड़ती हुई जादुई
सुगंध
को सूंघने
भौंरों का
लग जाता है मज़मा
सूखी आंखों से
टपकने लगता है
महुए का रस
लेकिन जब
प्रेम में सनी उंगलियां
इन्हें तोड़कर
रखती हैं अपनी हथेलियों में
तो इन हथेलियों को
नहीं मालूम होता है
कि,गुलाब की पैदाईश
कांटेदार कलम को
रोपकर होती है
हथेलियां यह भी नहीं जानती हैं कि
गुलाब के
सम्मोहन में फंसा प्रेम
एक दिन
सूख जाता है
प्रेम को
गुलाब नहीं
गुलाब का
बीज चाहिए----
◆ज्योति खरे