समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं----
जश्न में डूबा समय अब मौन है
थैलियां आश्वासन की खो रहें हैं----
चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
भदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं----
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----
"ज्योति खरे"
27 टिप्पणियां:
सुन्दर ग़ज़ल...
समसामयिक गजल…
बहुत बढ़ियाँ...
मौजूदा समय पर कटाक्ष करते हुए कविता... बहुत सुंदर....
बढ़िया है आदरणीय-
आभार आपका-
बहुत बढ़िया है।
आ० बहुत ही सुंदर कृति व प्रस्तुति , धन्यवाद
वाह ! बहुत खूब सुंदर गजल,भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
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RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
बहुत सुंदर !
बहुत बढिया..आभार
कल 22/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
बहुत बढ़िया सामयिक रचना !
नई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
बहुत बढिया......
बहुत खूब ... गहरा आक्रोश छलक रहा है ... व्यवस्था के प्रति सटीक टीका ...
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----
sundar prastuti.
kaya baat hai sir ji behroopiye so rahe ...... choukhato ke paon thak gaye........ umda sher va behatreen gajal
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
Bahut sundar abhivykti .......
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
भदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं----ओह...गहरा कटाक्ष और गहरा लेखन।
आंख से बलात्कार हो रहे हैं ....उफ़्फ़ क्या लिखा है ।
समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं----
शिकायतें द्वार पर टांग कर
हस्ताक्षर सलीके से रो रहें हैं----
बहुत बढ़िया अदरनीय सर 👌🙏🙏💐🌷
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----
एकदम सटीक...
बहुत ही सारगर्भित लाजवाब सृजन।
चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
भदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं----
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----यथार्थवादी सृजन। बहुत सटीक अभिव्यक्ति 💐
यथार्थ चित्रण,मार्मिक अभिव्यक्ति सर,सादर नमन
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