लौटा वर्षों बाद गांव में
सहमा सा चौपाल मिला
प्यार का रिश्ता सहेजे
धड़कनों को साथ लाया खिलखिलाती चलते बनी----
सभ्यता का पाठ पढ़ने
दौड़कर बचपन गया था
आज तक कच्ची खड़ी है
वह इमारत अधबनी----
टाट पर बैठे हुए हैं
भूख से बेहाल बच्चे
धर्म की खिचड़ी परोसी
खैरात वाली कुनकुनी----
नीम कड़वी ही भली
रोग की शातिर दवा है
दर्द थोड़ा ठीक है
तबियत लेकिन अनमनी-----
"ज्योति खरे"