कुछ रिश्ते
कुछ लकड़ियां--
टांग देती हैं
खूटी पर सपने
बीनकर लायीं लकड़ियों से
फिर जलाती हैं "ज्योति खरे"
17 टिप्पणियां:
माँ की सम्पूर्णता को व्यक्त करते हुए बेहद सुन्दर प्रस्तुति !!
वाह !
☆★☆★☆
कि कोई आयेगा
और कहेगा
अम्मा तुम्हे लेने आया हूं
घर चलो
बच्चों को लोरियां सुनाने------
आऽऽह…!
बहुत मार्मिक !!
आदरणीय ज्योति खरे जी
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हृदय से साधुवाद स्वीकार करें ।
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut umda
बीनकर लायीं लकड़ियों स फिर जलाती हैं विश्वास का चूल्हा ... maarmik prastuti
बहुत सुंदर मार्मिक प्रस्तुति ...!
RECENT POST आम बस तुम आम हो
बेहद सुन्दर......
मार्मिक ... कितना विस्वास है माँ को ... जो आशा बांधे रखती है .. अंत तक भी सिखाती है जीवन जीने का ढंग ...
bahut khoob
उम्मीद पर ही जिंदगी चलती रहती है...
भावपूर्ण रचना....बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@
आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया(नई रिकार्डिंग)
बहुत मार्मिक रचना है ज्योति भाई ! बधाई !
इसी आशा पर अंत तक जिएगी ,माँ है न !
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
खूबसूरत ! खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीय ! बहुत सुंदर ।
बीनकर लाती हैं
जंगल से
कुछ सपने
कुछ रिश्ते
कुछ लकड़ियां--
टांग देती हैं
खूटी पर सपने
सहेजकर रखती हैं आले में
बिखरे रिश्ते
डिभरी की टिमटिमाहट मेँ
टटोलती हैं स्मृतियां--बहुत ही सुंदर और हृदय स्पर्शी सृजन सर
उम्दा प्रस्तुति !
सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें
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