आजाद सांसें
आज यही सांसें
सबसे मासूम
पागल कोख से जन्मी
पागल आजादी चढ़ती, उतरती
नजरों से बचती
सड़कों पर घूम रही है
लावारिस,अशांत
किसी दुत्कारे जानवर की तरह
समय की काली रेत पर
आजादी को
आजादी को
नोंचने,खसोटने
अपनी बांहों में भरने की होड़ में
खोखले आचरण
खोखली औपचारिकता
खोखले संबंधों को
उढ़ा रहें हैं
केशरिया,सफेद,हरा
समय की रेत पर
सफर का पहला कदम रखने से पहले
यह तय करना होगा
सड़कों पर भटकती
लावारिस आजादी को
घर लाना है ------
सड़कों पर भटकती
लावारिस आजादी को
घर लाना है ------
"ज्योति खरे"
7 टिप्पणियां:
बेहद सशक्त भाव ..... स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (16-08-2014) को “आजादी की वर्षगाँठ” (चर्चा अंक-1707) पर भी होगी।
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हमारी स्वतन्त्रता और एकता अक्षुण्ण रहे।
स्वतन्त्रता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच लिखा है.
lajawaab rachna...atooot satya..
गहन भाव चिंतन देती रचना।
बहुत कुछ कह दिया है आपने छोटी सी कविता में ।
अभिनव सृजन।
वंदेमातरम्।
बेहद गंभीर चिंतन सर।
समय की काली रेत पर
आजादी को
नोंचने,खसोटने
अपनी बांहों में भरने की होड़ में
खोखले आचरण
खोखली औपचारिकता
खोखले संबंधों को
उढ़ा रहें हैं
केशरिया,सफेद,हरा
गज़ब की पंक्तियाँ।
प्रणाम सर
सादर।
समय की काली रेत पर
आजादी को
नोंचने,खसोटने
अपनी बांहों में भरने की होड़ में
खोखले आचरण
खोखली औपचारिकता
खोखले संबंधों को
उढ़ा रहें हैं
केशरिया,सफेद,हरा
सही कहा आजादी का मतलब बिगाड़ने वाले तिरंगा की खोखली औपचारिकता हघ तो कर रहे हैं ।
बहुत हघ विचारणीय गहन चिंतनपरक लाजवाब सृजन।
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