बुधवार, जनवरी 22, 2020

बसंत तुम लौट आये हो

बसंत तुम लौट आये
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अच्छा हुआ
इस सर्दीले वातावरण में
तुम लौट आये हो

सुधरने लगी है
बर्फीले प्रेम की तासीर
जमने लगी है
मौसम की नंगी देह पर
कुनकुनाहट

लम्बे अंतराल के बाद
सांकल के भीतर से
आने लगी हैं
खुसुर-फुसुर की आवाजें
सांसों की सनसनाहट से
खिसकने लगी है रजाई

धूप
दिनभर इतराती
चबा चबा कर
खाने लगी है
गुड़ की लैय्या 
औऱ आटे के लड्डू

वाह!! बसंत
कितने अच्छे हो तुम
जब भी आते हो
प्रेम में सुगंध भरकर चले जाते हो---

" ज्योति खरे "

16 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3589 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

Prakash Sah ने कहा…

बहुत सुन्दर...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 23 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर रचना सर।

Anita ने कहा…

सुंदर रचना

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत प्यारी रचना, बधाई आपको.

Book River Press ने कहा…

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Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

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