इंतजार है
तुम्हारे मोंगरे जैसे
खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक
कह दूं
पर तुम
शीरखोरमा
मीठी सिवैंईयां
बांटने में लगी हो
मालूम है
सबसे बाद में
मेरे घर आओगी
दिनभर की
थकान उतारोगी
बताओगी
किसने कितनी
ईदी दी
तुम
बिंदी नहीं लगाती हो
पर में
इस ईद में
तुम्हारे माथे पर
गुलाब की पंखुड़ी
लगाना चाहता हूं
मुझे नहीं मालूम
तुम इसे
प्रेम भरा
बोसा समझोगी
या गुलाब की सुगंध का
कोमल अहसास
या ईदी
अब जो भी हो
प्रेम को
जिंदा रखना है
अपन दोनों को
"ज्योति खरे"
22 टिप्पणियां:
सार्थक सन्देश।
ईद मुबारक।
वाह लाजवाब
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26 -5 -2020 ) को "कहो मुबारक ईद" (चर्चा अंक 3713) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर
अब जो भी हो ......वाह! मन को छू गयी, मन की बात!
कोमल अहसास से बुनी रचना
एक मासूम, कोमल सी चाहत
लाजवाब सृजन।
मासूम से नाज़ुक प्रेम को संभालना आसान कहाँ होता है ... पंखुरी सा हल्का जो होता है ...
खूबसूरत सृजन ...
आभार आपका
आभार आपका
यह साईट खुल ही नहीं रही
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
वाह! बहुत ही खूबसूरत सृजन आदरणीय सर.
सादर
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