टेसू और फागुन
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कटे हुए टेसू का हालचाल
पूंछने
सालभर में एक बार आता है फागुन
टेसू फागुन से मिलते ही
टपकाने लगता है
विकास के पांव तले कुचले
खून से सने
अपने फूलों के रंग
कहता है अपने दोस्त
फागुन से
तुम
प्रेम के रंगों से भरे
रहस्यों को
शहर की गलियों में
रह रहे लोगों को समझाओ
कुझ दिन झोपड़ पट्टी में भी गुजारो
भूखे बच्चों से बात करो
उजड़ रहे गांव में जाओ
जहां पैदा तो होता है अनाज
पर रोटियां की कमी है
एक चुटकी गुलाल
मजदूरों के गाल पर भी
मलो
क्योंकि इन्हें सम्हलने में लंबा समय लगेगा
मेरा क्या
मैं अपने कटे जाने की
पीड़ा से
एक दिन मुक्त हो जाऊंगा
सूखकर
मिट्टी में मिल जाऊंगा
फागुन
तुम्हें हर साल आना है
क्यों सूख रहे हैं
प्रेम के रंग
उनका जवाब देना है ---
◆ज्योति खरे
12 टिप्पणियां:
सुंदर रचना सर
आभार आपका
टेसू फागुन से मिलते ही टपकाने लगता है विकास के पांव तले कुचले खून से सने अपने फूलों के रंग
लाजवाब
हृदयस्पर्श सृजन। सच कहा गाँवो में जाओ देखो वहाँ की ममता टूटी सड़को को पर चलती प्रगति।
बेहतरीन।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
बहुत ही सुंदर
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
गजब की अभिव्यक्ति! कटते पेड़ों का दर्द टेसु की जुबानी।
होली के अवसर पर सारे,
रंगों को मैं ले आऊँ,
और तुम्हारे जीवन में मैं,
उन रंगों को बिखराऊँ...
रंगोत्सव की शुभकामनाएं
–वाह! बहुत सुन्दर
शुभकामनाओं के संग बधाई
फागुन
तुम्हें हर साल आना है
क्यों सूख रहे हैं
प्रेम के रंग
उनका जवाब देना है ---
ओह!निशब्द हूँ पढ़कर आदरनीय सर। टेसू के आक्रान्त हृदय के मासूम प्रश्न सुनकर फागुन भी मानो स्तब्ध है!सभ्यता के प्रसार में मिटते और रंगों से विहीन होते प्रेम के रंगों की शोखी कैसे एक अदद फागुन लौटा सकता है यही अनुत्तरित प्रश्न है।वो कैसे बता पायेगा कि जहाँ अनाज पैदा होता है वहाँ रोटी की कमी क्यों है।शायद इस तरह के प्रश्नों से दो चार होता फागुन शीघ्र भाग खड़ा हो जाता है।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें 🙏🙏
आभार आपका
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