पापा का पत्र अम्मा के नाम
पम्मी, आज मुझे जीवन के बारे में सोचने का मौका मिला है, मुझे पुराने दिन याद आ रहें हैं,गरीबी के दिन याद आ रहें हैं,वह दिन भी याद आ रहें हैं, जब तुम मेरी पत्नी बनकर आयी थी.
आज में दुबारा खुश हूँ,रात को सोया हूँ या जागा हूँ, कह नहीं सकता, या कोई सपना देखा है यह भी नहीं बता सकता,पर इतना जानता हूँ कि जबलपुर फूटाताल से शुरू होकर अब तक की बीती हुई यांदें जो दुबारा नहीं जी जा सकतीं,उनमें जी रहा हूँ.
आज ऊपर वाला दांत टूट गया, मुझे वह दिन याद आ गया, जब मैं और तुम छोटे थे,तुम लईया लेकर आ रही थी मैंने छीनने की कोशिश की थी, तुमने मुझे लात मारकर मुंह के बल गिरा दिया था,दांत पीला पड गया था,आज वही दांत गिर गया.बाद में पता चला था उस दिन तुम्हारा जन्मदिन था.
मेरी और तुम्हारी उम्र जैसे-जैसे बढती गयी,तुममें और मुझमे प्यार भी बढ़ता गया.
एक दिन मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ तुम्हारे दरवाजे तुमसे ब्याह रचाने आ गया,वह क्षण याद आ रहा है जब तुम्हारे भाई ने मेरे सीने में बंदूक रख दी थी और तुमने चीख कर कहा था कि, मैं इस लड़के से शादी करुँगी, मैं तुम्हें अपनी दुल्हन बना कर ले आया,सामाजिकता से गिरे नहीं क्योंकि तुम और मैं
एक ही जाती के थे पर हुआ तो प्रेम विवाह ही था.
मैंने अपने प्रथम मिलन पर तुम्हें एक तस्वीर बना कर दी थी " परिचय का प्रथम क्षण" क्योंकि मैं एक चित्रकार था और यही मेरी रोजी रोटी थी
आज जी भरकर रोया भी हूँ और हंसा भी हूँ क्योंकि अपनी बेवकूफियों की वजह से अपने सुखों को गंवाता रहा. सम्पूर्ण जिन्दगी की यादें दुहरा रहा हूँ सोच रहा हूँ कि कुछ पल उसी जगह पर जाकर बिताऊं जहां तुमने और मैंने प्रेम के बीज बोये थे, बदल तो सब कुछ गया होगा पर नहीं बदली होंगीं सड़कें.
इस जेल ने नयी दिशा दी हैं,नयी आशाएं दी हैं.
बच्चे बड़े और समझदार हो गएँ हैं सब तुम्हारे ऊपर गये हैं, स्वभाव और कर्म से
मरने से पहले एक बार तुम्हारी गोद में सर रखकर बहुत देर तक रोना चाहता हूँ.
एक बात बोलूं ---
सुंदर तो तुम जब भी थी
आज भी हो ---
सेन्ट्रल जेल
जबलपुर
15 मई 1974