आटे के ठोस
और तिली के मुलायम लड्डू
मीठी नीम के तड़के से
लाल मिर्च
और शक्कर भुरका नमकीन
हींग,मैथी,राई से बघरा मठा
और नये चांवल की खिचड़ी
खाने तब ही मिलती थी
जब सभी
तिल चुपड़ कर नहाऐं
और अम्मा के भगवान के पास
एक एक मुठ्ठी कच्ची खिचड़ी चढ़ाऐं
पापा ने कहा
मुझे नियमों से बरी रखो
बच्चों के साथ मुझे ना घसीटो
सीधे पल्ले को सिर पर रखते हुए
अम्मा ने कहा
नियम सबके लिए होते हैं
पापा ने पुरुष होने का परिचय दिया
क्या अब मुझसे प्रेम नहीं करती तुम
अम्मा ने तपाक से कहा
बिलकुल नहीं करती
तुमसे प्रेम
पापा की हथेली से
फिसलकर गिर गया सूरज
माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
पूंछा क्यों ?
अम्मा ने
जमीन में पड़े पापा के सूरज को उठाकर
सिंदूर वाली बिंदी में
लपेटते हुए बोला
तुम्हारा और मेरा प्रेम
समाज और घर की चौखट से बंधा है
जो कभी मेरा नहीं रहा
बांधा गया प्रेम तो
कभी भी टूट सकता है
निजि प्रेम कभी नहीं टूटता
मेरा निजि प्रेम मेरे बच्चे हैं
पापा बंधें प्रेम को तोड़कर
वैकुंठधाम चले गये
अम्मा आज भी
अपने निजि प्रेम को जिन्दा रखे
अपनी जमीन पर खड़ी हैं ---
"ज्योति खरे "
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर। कैसे छूट जा रहे हैं पन्ने पता नहीं खबर छपने की देने में ब्लॉगर बेईमानी करने लगा है लगता है :)
एक टिप्पणी भेजें