बीनकर लाता है
दिनभर में
काला दुःख
लाल कपट
सफ़ेद छल
टुकड़े टुकड़े हंसने की चाह
कुनकुनी रात की रंगीनियां
अवैध संबंधों की जांघ में
गपे छुरे का गुमनाम सच------
सरकारी अस्पताल में
मरने के लिये
मछली सी फड़फड़ाती
पुसुआ की छोकरी
और डाक बंगले में फिटती रही
रातभर रमीं
लुढ़कती रहीं
खाली बोतलें --------
डालकर गले में हांथ
खुरदुरे शहर का हाल बताता है
मन का दुखड़ा सुनाता है
तो
किसी का क्या जाता है--------
"ज्योति खरे"
25 टिप्पणियां:
सच को जिस तरह उकेरा है आपने बिरले ही कर पाते हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
सत्य जैसा भी है , प्रकट करता है !
ऐसा लगता है टीवी की बात हो रही है :)
अच्छा लगा पढ़कर
अच्छा लगा पढ़कर
!मन का हाल वयां करतीकविता...... सुंदर प्रस्तुति!!
!मन का हाल वयां करतीकविता...... सुंदर प्रस्तुति!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
मन को छू कर..
सच, किसी का क्या जाता है? सार्वकालिक सच।
बेहतरीन एक सच का उजागर,सुन्दर प्रस्तुति.
भावमय करते शब्द ...
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
कडुवे सच को शब्दों में हूबहू उतारा है ...
प्रभावशाली रचना ..
सत्य को प्रस्तुत करते शब्द...
अभिव्यक्ति गूढ़ है। इसलिए टिप्पणी के लिए मैं मूढ़ हूँ।
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
कटु सत्य ....मार्मिक अभिव्यक्ति
बहुत तीखी लगी...पर है सच्ची
आज के हालात को रखते भाव...बढ़िया शब्द....
तीखा मगर सटीक .......सुन्दर अभिव्यक्ति
http://boseaparna.blogspot.in/
बहुत ही सुन्दर
दिल में अक्रांत वेदना और रिसते हुए धाव लिए कलम की पैनी धार अंतस को छीलती प्रतीत हो रही है ! कहीं ना कहीं कुछ छूटता सा लगता है ! जीवन की आपाधापी हमें यहीं पर ला कर छोड़ती है ! पंक्तियां आदमखोर की तरह हमारे मन को लहूलुहान कर रहीं हैं
sundar Abhivyakti
सच की बेहतरीन प्रस्तुति..आपकी कलम से निकला हर शब्द सच की ज़मीन से जुड़ा दिखता है..
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