सोमवार, नवंबर 25, 2013

आशाओं की डिभरी ----------


                      कंक्रीट के जंगल में 
                      जो दिख रहें हैं
                      सतरंगी खिले हुए
                      दर्दीले फूल
                      अनगिनत आंख से टपके
                      कतरे से खिलें हैं ---

                      फाड़कर चले जाते थे जो तुम
                      आहटों के रेशमी पर्दे
                      आश्वासनों कि जंग लगी सुई से
                      रोज ही सिले हैं---

                      जहरीली हवाओं से कहीं
                      बुझ ना जाए
                      आशाओं की डिभरी
                      चढ़ी है भावनाओं की सांकल
                      दरवाजे इसीलिए नहीं खुले हैं---

                      पवित्र तो कतई नहीं हो
                      मनाने चौखट पर नहीं आना 
                      बदबूदार हो जाएगा वातावरण
                      हमें मालूम है
                      कलफ किए तुम्हारे
                      सफ़ेद पीले कुर्ते
                      गंदे पानी से धुले हैं------

                                          "ज्योति खरे"
चित्र 
गूगल से साभार

29 टिप्‍पणियां:

Ranjana verma ने कहा…

हमें मालूम है
कलफ लगे तुम्हारे सफ़ेद और पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं...... इस समय के सन्दर्भ में बिल्कुल सही और सटीक रचना .....

Ranjana verma ने कहा…

हमें मालूम है
कलफ लगे तुम्हारे सफ़ेद और पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं...... इस समय के सन्दर्भ में बिल्कुल सही और सटीक रचना .....

रविकर ने कहा…

बढ़िया है आदरणीय-
बधाई स्वीकारें-

Rajput ने कहा…

बहुत खूबसूरत, शानदार !

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

SUNDAR RACHNA ,,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
इसे साझा करने के लिए आपका धन्यवाद।

Saras ने कहा…

फाड़कर चले जाते थे जो तुम
आहटों के रेशमी पर्दे
आश्वासनों कि जंग लगी सुई से
रोज ही सिले हैं--
.... वाह .....मार्मिक ...!!!!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया.....
बेहद सटीक और मार्मिक....

सादर
अनु

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बढ़ियाँ रचना...

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुंदर!
भावनाओं की सांकल लगने के बाद दरवाज़े कहाँ खुलते हैं भला...

~सादर!!!

Amrita Tanmay ने कहा…

Gahre tak bhedti Sundar rachna..

virendra sharma ने कहा…

सशक्त भावाभिव्यक्ति। बेहतरीन रचना

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत सुन्दर सार्थक भाव , प्रभावकारी रचना ..बधाई

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बेहद भापूर्ण, बधाई.

Dr. pratibha sowaty ने कहा…

सार्थक , बेबाक अभिव्यक्ति

Kalipad Prasad ने कहा…

जहरीली हवाओं से कहीं
बुझ ना जाए
आशाओं की डिभरी
चढ़ी है भावनाओं की सांकल
दरवाजे इसीलिए नहीं खुले हैं
बहुत सुन्दर !
(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति..आभार..

आशीष अवस्थी ने कहा…

बहुत ही शानदार व गूढ़ लेखन , आदरणीय धन्यवाद
नया प्रकाशन --: तेरा साथ हो, फिरकैसी तनहाई
॥ जै श्री हरि: ॥

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सटीक ... काश के ये पीली कुर्ते हिते ही नहीं ... भावनाएं तो वैसे ही मरी हुई हैं ...

shyam gupta ने कहा…

अच्छी कविता है ..पर ये किसके लिए लिखी है, सिर्फ कवियों, पढ़े लिखों के लिए ...क्योंकि सामान्य जन ये व्यंजनायें समझेगा नहीं और नेता समझते ही नहीं...
---क्लिष्ट व दूरस्थ भावों से बचना चाहिए ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

namste chachaji .......bahut sundar

HARSHVARDHAN ने कहा…

सुन्दर रचना।। आभार।।

नई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी

नया ब्लॉग - संगणक

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

काश ये बात वो समझ सकें जिनके लिए ये लिखी गई है।

Kailash Sharma ने कहा…

हमें मालूम है
कलफ किए तुम्हारे
सफ़ेद पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं------

....बहुत सुन्दर और सटीक...

Vaanbhatt ने कहा…

सुंदर रचना...

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

उजाले के पार्श्व में जो रौशनी आपने इस कविता के माध्यम से दिखाई है वो बहुत प्रशंशनीय है. ह्रदय में उतरती पंक्तियाँ.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-12-2013) को कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये- चर्चा मंच 1451
पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Jyotsana pradeep ने कहा…

bahut hi sunder

ashok andrey ने कहा…

आपकी बेहतरीन रचना से गुजरना अच्छा लगा,बधाई.