कंक्रीट के जंगल में
जो दिख रहें हैं
जो दिख रहें हैं
सतरंगी खिले हुए
दर्दीले फूल
अनगिनत आंख से टपके
कतरे से खिलें हैं ---
फाड़कर चले जाते थे जो तुम
आहटों के रेशमी पर्दे
आश्वासनों कि जंग लगी सुई से
रोज ही सिले हैं---
जहरीली हवाओं से कहीं
बुझ ना जाए
आशाओं की डिभरी
चढ़ी है भावनाओं की सांकल
दरवाजे इसीलिए नहीं खुले हैं---
पवित्र तो कतई नहीं हो
मनाने चौखट पर नहीं आना
बदबूदार हो जाएगा वातावरण
बदबूदार हो जाएगा वातावरण
हमें मालूम है
कलफ किए तुम्हारे
सफ़ेद पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं------
"ज्योति खरे"
चित्र
गूगल से साभार
29 टिप्पणियां:
हमें मालूम है
कलफ लगे तुम्हारे सफ़ेद और पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं...... इस समय के सन्दर्भ में बिल्कुल सही और सटीक रचना .....
हमें मालूम है
कलफ लगे तुम्हारे सफ़ेद और पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं...... इस समय के सन्दर्भ में बिल्कुल सही और सटीक रचना .....
बढ़िया है आदरणीय-
बधाई स्वीकारें-
बहुत खूबसूरत, शानदार !
SUNDAR RACHNA ,,
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
इसे साझा करने के लिए आपका धन्यवाद।
फाड़कर चले जाते थे जो तुम
आहटों के रेशमी पर्दे
आश्वासनों कि जंग लगी सुई से
रोज ही सिले हैं--
.... वाह .....मार्मिक ...!!!!
बहुत बढ़िया.....
बेहद सटीक और मार्मिक....
सादर
अनु
बहुत ही बढ़ियाँ रचना...
बहुत सुंदर!
भावनाओं की सांकल लगने के बाद दरवाज़े कहाँ खुलते हैं भला...
~सादर!!!
Gahre tak bhedti Sundar rachna..
सशक्त भावाभिव्यक्ति। बेहतरीन रचना
बहुत सुन्दर सार्थक भाव , प्रभावकारी रचना ..बधाई
बेहद भापूर्ण, बधाई.
सार्थक , बेबाक अभिव्यक्ति
जहरीली हवाओं से कहीं
बुझ ना जाए
आशाओं की डिभरी
चढ़ी है भावनाओं की सांकल
दरवाजे इसीलिए नहीं खुले हैं
बहुत सुन्दर !
(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति..आभार..
बहुत ही शानदार व गूढ़ लेखन , आदरणीय धन्यवाद
नया प्रकाशन --: तेरा साथ हो, फिरकैसी तनहाई
॥ जै श्री हरि: ॥
सटीक ... काश के ये पीली कुर्ते हिते ही नहीं ... भावनाएं तो वैसे ही मरी हुई हैं ...
अच्छी कविता है ..पर ये किसके लिए लिखी है, सिर्फ कवियों, पढ़े लिखों के लिए ...क्योंकि सामान्य जन ये व्यंजनायें समझेगा नहीं और नेता समझते ही नहीं...
---क्लिष्ट व दूरस्थ भावों से बचना चाहिए ...
namste chachaji .......bahut sundar
सुन्दर रचना।। आभार।।
नई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
नया ब्लॉग - संगणक
काश ये बात वो समझ सकें जिनके लिए ये लिखी गई है।
हमें मालूम है
कलफ किए तुम्हारे
सफ़ेद पीले कुर्ते
गंदे पानी से धुले हैं------
....बहुत सुन्दर और सटीक...
सुंदर रचना...
उजाले के पार्श्व में जो रौशनी आपने इस कविता के माध्यम से दिखाई है वो बहुत प्रशंशनीय है. ह्रदय में उतरती पंक्तियाँ.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-12-2013) को कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये- चर्चा मंच 1451
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut hi sunder
आपकी बेहतरीन रचना से गुजरना अच्छा लगा,बधाई.
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