बुधवार, दिसंबर 30, 2020
कैसे भूल सकता हूँ तुम्हें
रविवार, दिसंबर 13, 2020
तम शीत ऋतु की तरह आती हो
शुक्रवार, नवंबर 13, 2020
मिट्टी का दिया
बुधवार, सितंबर 16, 2020
कैसी हो मेरी "अपना"
सोमवार, सितंबर 14, 2020
माय डियर लच्छू
शुक्रवार, सितंबर 11, 2020
प्रेम
रविवार, अगस्त 23, 2020
नदी
बुधवार, अगस्त 12, 2020
कृष्ण का प्रेम
गुरुवार, अगस्त 06, 2020
प्रेम तुम कब आ रहे हो
रविवार, अगस्त 02, 2020
सावन सोमवार औऱ मैं
दोस्तों के लिए दुआ
शुक्रवार, जुलाई 24, 2020
चाय पीते समय
गुरुवार, जुलाई 02, 2020
कोहरे के बाद धूप निकलेगी
शनिवार, जून 20, 2020
पापा
मंगलवार, जून 02, 2020
फिरोजी चुन्नी
बुधवार, मई 27, 2020
बूढ़े आदमी की पर्ची
सोमवार, मई 25, 2020
ईद मुबारक
सोमवार, मई 18, 2020
लौट रहें हैं अपने गांव--
शनिवार, मई 09, 2020
घर पहुंचने की चाहत में--
शुक्रवार, मई 01, 2020
कहां खड़ा है हमारा मजदूर--
बुधवार, अप्रैल 15, 2020
मृत्यु ने कहा- मैं मरना चाहती हूं---
शनिवार, अप्रैल 04, 2020
इन दिनों सपने नहीं आते
सोमवार, मार्च 23, 2020
सन्नाटा
मंगलवार, मार्च 17, 2020
कोरोना
रविवार, मार्च 08, 2020
चाहती हैं स्त्रियां
बुधवार, मार्च 04, 2020
यार फागुन
गुरुवार, फ़रवरी 27, 2020
सावधान हो जाओ
शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2020
अपन दोनों
बुधवार, फ़रवरी 05, 2020
मेरी नागरिकता की पहचान
मेरी नागरिकता की पहचान
उसी दिन घोषित हो गयी थी
जिस दिन
दादी ने
आस-पड़ोस में
चना चिंरोंजी
बांटते हुए कहा था
मेरे घर
एक नया मेहमान आने वाला है
उसी दिन घोषित हो गयी थी
जिस दिन
मेरी नानी ने
छत पर खड़े होकर
पड़ोसियों से कहा था
मैं नानी बनने वाली हूं
किसी सरकारी सफेद पन्ने पर
काली स्याही से नहीं
लिखी गयी है
मां के पेट में उभरी
लकीरों में दर्ज है
जो कभी मिटती नहीं हैं
हमारी नागरिकता की वास्तविक
पहचान है---
सोमवार, फ़रवरी 03, 2020
प्रेम को बचाने के लिए
मेरी जमानत का
इंतजाम करके रखना
जा रहा हूं
व्यवहार की कोरी कापी में
प्रेम लिखने
हो सकता है
लिखते समय
मुझे लाठियों से मारा जाए
सिर फोड़ दिया जाए
या मेरे घर पर
पत्थर बरसायें जाए
कोतवाली में रपट लिखा दी जाए
प्रेम
खेमों और गुटों में विभाजित हो गया है
दोस्तों तैनात हो जाओ
प्रेम को बचाने के लिए---
"ज्योति खरे"
मंगलवार, जनवरी 28, 2020
आम आदमी के हरे भरे सपने
हरे-भरे सपने
***********
आम आदमी के कान में
फुसफुसाती आवाजें
निकल जाती हैं
यह कहते हुए
कि,
टुकड़े टुकड़े जमीन पर
सपनें मत उगाओ
जानते हो
कबूतरों को
सिखाकर उड़ाया जाता है
लाल पत्थरों के महल से
जाओ
आम आदमी के
सुखद एहसासों को
कुतर डालो
उनकी खपरीली छतों पर बैठकर
टट्टी करो
कुतर डालो सपनों को
सपने तो सपने होते हैं
आपस में लड़ते समय
जमीन पर गिरकर
टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं
काले समय के इस दौर में
सपनों को ऊगने
भुरभुरी जमीन चाहिए
तभी तो सपनें
हरे-भरे लहरायेंगे---
"ज्योति खरे"
बुधवार, जनवरी 22, 2020
बसंत तुम लौट आये हो
बसंत तुम लौट आये
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अच्छा हुआ
इस सर्दीले वातावरण में
तुम लौट आये हो
सुधरने लगी है
बर्फीले प्रेम की तासीर
जमने लगी है
मौसम की नंगी देह पर
कुनकुनाहट
लम्बे अंतराल के बाद
सांकल के भीतर से
आने लगी हैं
खुसुर-फुसुर की आवाजें
सांसों की सनसनाहट से
खिसकने लगी है रजाई
धूप
दिनभर इतराती
चबा चबा कर
खाने लगी है
गुड़ की लैय्या
औऱ आटे के लड्डू
वाह!! बसंत
कितने अच्छे हो तुम
जब भी आते हो
प्रेम में सुगंध भरकर चले जाते हो---
" ज्योति खरे "
गुरुवार, जनवरी 16, 2020
गुस्सा हैं अम्मा
गुस्सा हैं अम्मा
***********
नहीं जलाया कंडे का अलाव
नहीं बनाया गक्कड़ भरता
नहीं बनाये मैथी के लड्डू
नहीं बनाई गुड़ की पट्टी
अम्मा ने इस बार--
कड़कड़ाती ठंड में भी
नहीं रखी खटिया के पास
आगी की गुरसी
नहीं गाये
रजाई में दुबककर
खनकदार हंसी के साथ
लोकगीत
नहीं जा रही जल चढाने
खेरमाई
नहीं पढ़ रही
रामचरित मानस--
जब कभी गुस्सा होती थी अम्मा
झिड़क देती थीं पिताजी को
ठीक उसी तरह
झिड़क रहीं हैं मुझे
मोतियाबिंद वाली आंखों से
टपकते पानी के बावजूद
बस पढ़ रहीं हैं प्रतिदिन
घंटों अखबार
दिनभर बड़बड़ाती हैं
अलाव जैसा जल रहा है जीवन
भरते के भटे जैसी
भुंज रही है अस्मिता
जमीन की सतहों से
उठ रही लहरों पर
लिखी जा रही हैं संवेदनायें
घर घर मातम है
सड़कों पर
हाहाकार पसरा पड़ा है
रोते हुये गुस्से में
कह रहीं हैं अम्मा
यह मेरी त्रासदी है
कि
मैने पुरुष को जन्म दिया
और वह तानाशाह बन गया--
नहीं खाऊँगी
तुम्हारे हाथ से दवाई
नहीं पियूंगी
तुम्हारे हाथ का पानी
तुम मर गये हो
मेरे लिये
इस बार
हर बार---------
"ज्योति खरे"
सोमवार, जनवरी 13, 2020
सिगड़ी में रखी चाय
सिगड़ी में रखी चाय
****************
गली की
आखिरी मोड़ वाली पुलिया पर बैठकर
बहुत इंतजार किया
तुम नहीं आयीं
यहां तक तो ठीक था
पर तुम घर से निकली भी नहीं ?
मानता हूं
प्रेम दुनियां का सबसे
कठिन काम है
तुम अपने आलीशान मकान में
बैठी रही
मैं मुफ्त ही
अपनी टपरिया बैठे बैठे
बदनाम हो गया
बर्फीला आसमान
उतर रहा है छत पर
सोच रहा ह़ू
कि आयेंगे मेरे लंगोटिया यार
पूछने हालचाल
रख दी है
सिगड़ी पर
गुड़,सौंठ,तुलसी की चाय उबलने
यारों के ख्याल में ही डूबा रहा
हक़ के आंदोलन के लिए
लड़ने वाले
ईमानदार लड़ाकों को
भेज दिया गया है
हवालात में
जमानत लेने में
बह गया पसीना
सिगड़ी में रखी चाय
उफन कर बह रही है----
"ज्योति खरे"
शनिवार, जनवरी 04, 2020
कुछ नया होना चाहिए
नये वर्ष में
********
इस धरती पर
कुछ नया
कुछ और नया होना चाहिए
चाहिए
अल्हड़पन सी दीवानगी
जीवन का
मनोहारी संगीत
अपनेपन का गीत
चाहिए
सुगन्धित हवाओं का बहना
फूलों का गहना
ओस की बूंदों को गूंथना
कोहरे को छू कर देखना
चिड़ियों सा चहचहाना
कुछ कहना
कुछ बतियाना--
इस धरती पर
कितना कुछ है
गाँव,खेत,खलियान
जंगल की मस्ती
नदी की दौड़
आंसुओं की वजह
प्रेम का परिचय
इन सब में कहीं
कुछ और नया होना चाहिए
होना तो कुछ चाहिए
चाहिए
किताबों,शब्दों से जुडे लोग
बूढों में बचपना
सुंदर लड़कियां ही नहीं
चाहिए
पोपले मुंह वाली वृद्धाओं में
खनकदार हंसी--
नहीं चाहिए
परचित पुराने रंग
पुराना कैनवास
कुछ और नया होना चाहिए
होना तो कुछ चाहिए ---------
"ज्योति खरे"