धुंधली आंखें भी
पहचान लेती हैं
भदरंग चेहरे
सुना है------
इन चेहरों में
मेरा चेहरा भी दीखता है-------
गुम गयी है
व्यवहार की किताब
शहर में
सुना है---------
गांव के कच्चे घरों में
अपनापन
आज भी रिसता है------
इस अंधेरे दौर में
जला कर रख देती है
बूढ़ी दादी
लालटेन
सुना है------
बूढ़ा धुआं
दर्द अपना लिखता है-------
नीम बरगद के भरोसे
झूलती हुई झूला
उड़ रही है आकाश में
खिलखिलाती
सुना है-------
प्यार की चुनरी के पीछे
चांद
आकर छिपता है--------
"ज्योति खरे"
पहचान लेती हैं
भदरंग चेहरे
सुना है------
इन चेहरों में
मेरा चेहरा भी दीखता है-------
गुम गयी है
व्यवहार की किताब
शहर में
सुना है---------
गांव के कच्चे घरों में
अपनापन
आज भी रिसता है------
इस अंधेरे दौर में
जला कर रख देती है
बूढ़ी दादी
लालटेन
सुना है------
बूढ़ा धुआं
दर्द अपना लिखता है-------
नीम बरगद के भरोसे
झूलती हुई झूला
उड़ रही है आकाश में
खिलखिलाती
सुना है-------
प्यार की चुनरी के पीछे
चांद
आकर छिपता है--------
"ज्योति खरे"
15 टिप्पणियां:
इस अंधेरे दौर में
जला कर रख देती है
बूढ़ी दादी
लालटेन
सुना है------
बूढ़ा धुआं
दर्द अपना लिखता हैsundr abhivykti Jyoti ji
ज्योतिजी ...गाँव का अपनापन , दुश्वारियां ....सौंधापन ...वहीँ इन सबसे बेखबर, एक अल्हड़ नवयौवना के भूरे भूरे सपने ......आपकी यह कविता मन में पैठ गयी है ....बहुत ही सुन्दर चित्र खींचा है आपने
बिल्कुल सच सुना हैं
सभी क्षणिकाएँ भावपूर्ण और अर्थपूर्ण...
गुम गयी है
व्यवहार की किताब
शहर में
सुना है---------
गांव के कच्चे घरों में
अपनापन
आज भी रिसता है------
शुभकामनाएँ.
बेहद खूबसूरत रचना....
इस अंधेरे दौर में
जला कर रख देती है
बूढ़ी दादी
लालटेन
सुना है------
बूढ़ा धुआं
दर्द अपना लिखता है-------
मर्मस्पर्शी एहसास....
बहुत सुन्दर
अनु
सुना है-------
प्यार की चुनरी के पीछे
चांद
आकर छिपता है--------
बहुत सुंदर
सुना है-------
प्यार की चुनरी के पीछे
चांद
आकर छिपता है--------
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
सुन्दर पंक्तियाँ
आप सभी का आभार
आपकी प्रतिक्रिया लेखन को उर्जा प्रदान करती है
sundar bhav
सही है ...
शुभकामनायें आपको !
सुना है------
इन चेहरों में
मेरा चेहरा भी दीखता है----
बहुत खूब ....!!
बूढ़ा धुआं
दर्द अपना लिखता है-------बहुत ही भावपूर्ण ....
बहुत ही अच्छा लिखा है..
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