सावन में
मंदिर के सामने
घंटों खड़े रहना
तुम्हें कई कोंणों से देखना
तुम्हारे चमकीले खुले बाल
हवा में लहराता दुपट्टा
मेंहदी रचे हांथ
जानबूझ कर
सावनी फुहार में तुम्हारा भींगना
दुपट्टे को
नेलपॉलिश लगी उंगलियों से
नजाकत से पकड़ना,
ओढ़ना
कीचड़ में सम्हलकर चलना
यह सब देखकर
सीने में लोट जाता था सांप-
पागल तो तुम भी थी
जानबूझ कर निकलती थी पास से
कि,
मैं सूंघ लूं
तुम्हारी देह से निकलती
चंदन की महक
पढ़ लूं आंखों में लगी
कजरारी प्रेम की भाषा
समझ जाऊं
लिपिस्टिक लगे होठों की मुस्कान-
आज जब
खड़ा होता हूँ
मौजूदा जीवन की सावनी फुहार में
झुलस जाता है
भीतर बसा पागलपन
जानता हूं
तुम भी झुलस जाती होगी
स्मृतियों की
सावनी फुहार में--
वाकई पागल थे अपन दोनों-----
"ज्योति खरे"
23 टिप्पणियां:
अच्छा लगता है पागल होना भी कभी। वाह।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 27 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
27/07/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28 -07-2019) को "वाह रे पागलपन " (चर्चा अंक- 3410) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
शृंगार रस का सुंदर सृजन।
अहसास से पूर्ण।
बहुत ही सुंदर सावनी रचना...🙏
बहुत खूब
शानदार प्रस्तुति।
महाशय! काश!!! ... लिपस्टिक और नेलपॉलिश जैसे रासायनिक सौंदर्य-प्रसाधन उस सावनी फुहार में धुल जाती ...☺
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
मैं लाजवाब हूँ। सिर्फ एक शब्द कहूँगा - 'चलचित्र'।
आभार आपका
यह पेज खुल नहीं रहा है
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नये भारत का उदय - अनुच्छेद 370 और 35A खत्म - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर कोनों से तुमको देखना ..
चन्दन पास से गुजरे और वो उसकी महक.. फिर सांप क्योंकर न लौटे मन में.
नैलपोलिश, चुनरी सम्भालना उसका, भीगी भीगी सी.....और न जाने कितने दृश्य
इतनी सब यादें वो भी इस पागलपन की संजोकर रखना मन में, ये जहर जैसा काम नहीं है क्या ??
लाजवाब रचना :))
पधारें कायाकल्प
कितना अच्छा लगता है इसी पागलपन में जीना ...
प्रेम का कोई चलचित्र गुज़र गया आँखों के सामने ...
ऐसा पागलपन भी शायद जिंदगी का एक अभिन्न अंग होता है
ऐसा पागलपन भी अच्छा लगता है।
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