मेरा कब सार्वजानिक जीवन में
प्रवेश हुआ होगा
मुझे नहीं मालूम ----
मेरी भक्ति की सारी मान्यतायें
भक्ति काल में ही
सिकुड़ कर रह गयी हैं
जैसे सूती कपड़े को पहली बार
धोते समय होता है -----
कॉटन की साड़ियों से
द्रोपती का तन ढांकने वाला मैं
नारियों को देखकर
स्वयं ही मंत्र मुग्ध हो जाता हूँ
चीरहरण के समय की
अपनी उपस्थिति को भूल जाता हूँ -----
मैं
सार्वजनिक जीवन में सबका नायक हूँ
राजनितिक दलों का महासचिव
बॉलीवुड का सिंघम -----
सूचनाओं के अभाव में
मुझे कई कांडों का पता ही नहीं चल पाता
क्योंकि मेरी अंतरात्मा मर चुकी है
और मैं
बियर बार में
युवा मित्रों को
प्यार के गुर सिखाता रहता हूँ
हजार प्रेमिकाओं को कैसे डील करें
उसकी तरकीब बताता रहता हूँ -----
मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानता हूँ
कि आज भी मेरे जन्मदिन पर
शुद्ध घी के असंख्य दीपक जलाकर
प्रार्थना करते हैं लोग
हे कृष्ण
घर परिवार,नाते-रिश्तेदारी से
कोई लेना देना नहीं है
आप तो बस प्रेम करने के पूरे गुण सिखा दें --------
"ज्योति खरे"